SHRI SHIV SHANI MANDIR DHORI

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Sunday, May 26, 2013

॥ श्री शनि चालिसा ॥

दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुःख दूर करि ,
कीजै नाथ निहाल ॥1॥
जय जय श्री शनिदेव
प्रभु , सुनहु विनय
महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय ,
राखहु जन की लाज ॥2॥
जयति जयति शनिदेव
दयाला । करत सदा भक्तन
प्रतिपाला ॥
चारि भुजा, तनु श्याम
विराजै । माथे रतन मुकुट
छवि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर
भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल श्रवन चमाचम चमके
। हिये माल मुक्तन
मणि दमकै ॥
कर में गदा त्रिशूल
कुठारा । पल बिच करैं
अरिहिं संहारा ॥
पिंगल, कृष्णो, छाया,
नन्दन । यम, कोणस्थ,
रौद्र, दुःख भंजन ॥
सौरी, मन्द शनी दश
नामा । भानु पुत्र
पूजहिं सब कामा ॥
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं
जाहीं । रंकहुं राव करैं
क्षण माहीं ॥
पर्वतहू तृण होइ निहारत
। तृणहू को पर्वत
करि डारत ॥
राज मिलत वन
रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ
की मति हरि लीन्हयो ॥
वनहुं में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥
लषणहिं शक्ति विकल
करिडारा । मचिगा दल में
हाहाकारा ॥
रावण की गति-
मति बौराई । रामचन्द्र
सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन
लंका । बजि बजरंग बीर
की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु
धारा । चित्र मयूर
निगलि गै हारा ॥
हार
नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर
डरवायो तोरी ॥
भारी दशा निकृष्ट
दिखायो । तेलहिं घर
कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महँ
कीन्हयों । तब प्रसन्न
प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
हरिश्चन्द्र नृप
नारि बिकानी । आपहुं भरे
डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर
दशा सिरानी । भूंजी-
मीन कूद गई पानी ॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब
जाई ।
पारवती को सती कराई

तनिक विकलोकत
ही करि रीसा । नभ
उड़ि गतो गौरिसुत
सीसा ॥
पाण्डव पर भै
दशा तुम्हारी ।
बची द्रोपदी होति उधारी ॥
कौरव के
भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत
करि डारयो ॥
रवि कहँ मुख महँ
धरि तत्काला । लेकर
कूदि परयो पाताला ॥
शेष देव-लखि विनती लाई
। रवि को मुख ते
दियो छुड़ाई ॥
वाहन प्रभु के सात
सुजाना । जग दिग्गज
गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिह आदि नख
धारी । सो फल ज्योतिष
कहत पुकारी ॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं
। हय ते सुख
सम्पत्ति उपजावै ॥
गर्दभ हानि करै बहु
काजा । सिह सिद्ध्कर
राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर
डारै । मृग दे कष्ट प्राण
संहारै ॥
जब आवहिं स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर
भारी ॥
तैसहि चारि चरण यह
नामा । स्वर्ण लौह
चाँदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं
। धन जन सम्पत्ति नष्ट
करावैं ॥
समता ताम्र रजत
शुभकारी । स्वर्ण सर्वसुख
मंगल भारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित
गावै । कबहुं न
दशा निकृष्ट सतावै ॥
अद्भुत नाथ दिखावैं
लीला । करैं शत्रु के
नशि बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य
बुलवाई । विधिवत
शनि ग्रह शांति कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस
चढ़ावत । दीप दान दै बहु
सुख पावत ॥
कहत राम सुन्दर प्रभु
दासा । शनि सुमिरत सुख
होत प्रकाशा ॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को,
की हों 'भक्त' तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन,
हो भवसागर पार ॥

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