SHRI SHIV SHANI MANDIR DHORI

SHRI SHIV SHANI MANDIR DHORI
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Thursday, July 25, 2013

आधुनिक युग में
व्यक्ति के पास समय
का अभाव एक आम
समस्या है, कई
प्रकार के कार्यों में
व्यस्त होने के कारण
कई
व्यक्ति साधना करने
के लिए उत्सुक होते है
लेकिन समय नहीं दे
पाते है. ऐसे
व्यक्तियो को चाहिए
की वह बड़े तांत्रिक
अनुष्ठानो की अपेक्षा लघु
मगर अत्यधिक
तीव्र
प्रभावी प्रयोगों को सम्प्पन
करे. यह सामान्य
प्रयोग कोई
भी साधक कर
सकता है तथा इसमें
ज्यादा सामग्री तथा विधिविधान
की भी आवश्यकता नहीं है.
अतः जिनके पास
समय का अभाव
हो तथा बड़े क्रम
को अपनाने के लिए
समय न हो उनको ऐसे
छोटे प्रयोग करने
पर भी कई परिणाम
प्राप्त कर सकते है.
यहाँ पर गृहस्थ सुख
शांति से सबंधित,
सौर्य
की प्राप्ति के लिए
तथा ग्रह पीड़ा से
मुक्ति के लिए तिन
ऐसे
ही प्रयोगों को दिया जा सकता है
जिसके माध्यम से
साधक अल्प समय
को दे कर भी अपने
जीवन में भाग्य
का उदय कर
सकता है.
सोमवार के दिन
साधक सात
बिल्वपत्र ले उन
सातो बिल्वपत्र
पर केसर से 'ॐ
शिवाय समस्त दोष
निवारणाय फट'
लिखे. अब एक बिल्व
पत्र को हाथ में रख
कर ७ बार 'ॐ
शिवाय समस्त दोष
निवारणाय फट'
उच्चारण करे, इस
प्रकार सभी ७
बिल्व पत्र पर यह
प्रक्रिया करे. इसके
बाद
किसी शिवमंदिर में
शिव पूजन करे
तथा उसके बाद एक
एक बेल पत्र को 'ॐ
शिवाय फट् '
का उच्चारण करते
हुवे समर्पित
करना चाहिए. इस
प्रकार साधक इस
क्रिया को एक, तिन
या सात सोमवार
तक करे. इससे साधक
के सभी गृहदोष,
पापकर्म समाप्त
होते है तथा घर में
शांति का स्थापन
होने लगता है.
मंगलवार के दिन
साधक चने तथा गुड
का भोग
किसी हनुमान
मंदिर में लगाए.
हनुमान
जी की प्रतिमा पर
से सिन्दूर ले कर अपने
ललाट पर तिलक कर
के साधक निम्न मंत्र
का १०८ बार जाप
करे. इस जाप में
साधक
को किसी भी माला आदि की ज़रूरत
नहीं है. 'ॐ हं
हनुमंताय वीररूपाय
नमः' इसके बाद
साधक भोग को स्वयं
ग्रहण कर ले. साधक
में
वीरता तथा सौर्यता का संचार
होने लगता है.
किसी भी रविवार
को साधक सूर्योदय
के समय सूर्य
को अर्ध्य अर्पित
करे. साधक
को निराहार
रहना चाहिए
तथा दोपहर के समय
में ७ कुंवारी कन्याओं
को भोजन
यथा शक्ति दक्षिणा प्रदान
करे. यह सम्प्पन होने
के बाद ही साधक खुद
भोजन करने के लिए
बैठे, उस समय साधक
भोजन
की थाली को सामने
रख कर ' ॐ
ह्रीं भास्कराय
ह्रीं नमः ' का ७
बार उच्चारण कर के
भोजन ग्रहण करे
तथा भोजन करते
समय कुछ बोले नहीं,
मन ही मन यह मंत्र
का जाप करता रहे
जब तक की भोजन न
हो जाये. इस प्रयोग
को करने पर साधक
को ग्रह से सबंधित
पीड़ा का नाश
होता है.

NAVAGRAH STOTRAM

II नवग्रह स्तोत्र
II
अथ नवग्रह स्तोत्र
II
श्री गणेशाय नमः II
जपाकुसुम संकाशं
काश्यपेयं
महदद्युतिम् I
तमोरिंसर्वपापघ्नं
प्रणतोSस्मि दिवाकरम्
II १ II
दधिशंखतुषाराभं
क्षीरोदार्णव
संभवम् I
नमामि शशिनं सोमं
शंभोर्मुकुट भूषणम् II
२ II
धरणीगर्भ संभूतं
विद्युत्कांति समप्रभम्
I
कुमारं शक्तिहस्तं तं
मंगलं प्रणाम्यहम् II
३ II
प्रियंगुकलिकाश्यामं
रुपेणाप्रतिमं बुधम्
I
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं
तं बुधं प्रणमाम्यहम्
II ४ II
देवानांच ऋषीनांच
गुरुं कांचन सन्निभम्
I
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं
तं
नमामि बृहस्पतिम्
II ५ II
हिमकुंद मृणालाभं
दैत्यानां परमं गुरुम्
I
सर्वशास्त्र
प्रवक्तारं भार्गवं
प्रणमाम्यहम् II ६ II
नीलांजन समाभासं
रविपुत्रं यमाग्रजम्
I
छायामार्तंड संभूतं
तं नमामि शनैश्चरम्
II ७ II
अर्धकायं महावीर्यं
चंद्रादित्य
विमर्दनम् I
सिंहिकागर्भसंभूतं तं
राहुं प्रणमाम्यहम्
II ८ II
पलाशपुष्पसंकाशं
तारकाग्रह मस्तकम्
I
रौद्रंरौद्रात्मकं
घोरं तं केतुं
प्रणमाम्यहम् II ९ II
इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम्
यः पठेत्
सुसमाहितः I
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न
शांतिर्भविष्यति II
१० II
नरनारी नृपाणांच
भवेत्
दुःस्वप्ननाशनम् I
ऐश्वर्यमतुलं
तेषां आरोग्यं
पुष्टिवर्धनम् II ११
II
ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः I
ता सर्वाःप्रशमं
यान्ति व्यासोब्रुते
न संशयः II १२ II
II इति श्रीव्यास
विरचितम्
आदित्यादी नवग्रह
स्तोत्रं संपूर्णं II

Tuesday, July 23, 2013

DURGA CHALISA

ll
श्री दुर्गा चालीसा ll
नमो नमो दुर्गे सुख
करनी। नमो नमो दुर्गे
दुःख हरनी॥
निरंकार है
ज्योति तुम्हारी। तिहूँ
लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख
महाविशाला। नेत्र
लाल
भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक
सुहावे। दरश करत जन
अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै
कीना। पालन हेतु अन्न
धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग
पाला। तुम
ही आदि सुन्दरी
बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन
हारी। तुम
गौरी शिवशंकर
प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण
गावें। ब्रह्मा विष्णु
तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम
धारा। दे
सुबुद्धि ऋषि मुनिन
उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह
को अम्बा। परगट भई
फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद
बचायो। हिरण्याक्ष
को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग
माहीं। श्री नारायण
अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत
विलासा। दयासिन्धु
दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में
तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात
बखानी॥
मातंगी अरु
धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख
दाता॥
श्री भैरव तारा जग
तारिणी। छिन्न भाल
भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह
भवानी। लांगुर वीर
चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग
विराजै ।जाको देख
काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और
त्रिशूला। जाते उठत
शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में
तुम्हीं विराजत।
तिहुँलोक में
डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम
मारे। रक्तबीज शंखन
संहारे॥
महिषासुर नृप
अति अभिमानी।
जेहि अघ भार
मही अकुलानी॥
रूप कराल
कालिका धारा। सेन
सहित तुम
तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन र जब
जब। भई सहाय मातु तुम
तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव
लोका। तब महिमा सब
रहें अशोका॥
ज्वाला में है
ज्योति तुम्हारी। तुम्हें
सदा पूजें नरनारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश
गावें। दुःख दारिद्र
निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन
लाई। जन्ममरण
ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत
पुकारी।योग न
हो बिन
शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप
कीनो। काम अरु क्रोध
जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान
धरो शंकर को। काहु
काल
नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न
पायो। शक्ति गई तब
मन पछितायो॥
शरणागत हुई
कीदेवीदास शरण निज
जानी। कहु
कृपा जगदम्ब भवानी॥
र्ति बखानी। जय जय
जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न
आदि जगदम्बा। दई
शक्ति नहिं कीन
विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट
अति घेरो। तुम बिन
कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट
सतावें। मोह मदादिक
सब बिनशावें॥
शत्रु नाश कीजै
महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें
भवानी॥
करो कृपा हे मातु
दयाला।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु
निहाला॥
जब लगि जिऊँ दया फल
पाऊँ । तुम्हरो यश मैं
सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा
जो कोई गावै। सब सुख
भोग परमपद पावै॥

Monday, July 15, 2013

शिव महिमा स्त्रोतं की रचना ;


‘ शिव
महिम्नस्तोत्र ‘
भगवान शिव के
भक्तों के बीच
काफी लोकप्रिय है,
भगवान शिव
की प्रार्थना के
बीच सर्वश्रेष्ठ में से
एक माना जाता है |
इस स्तोत्र
की रचना की परिस्थितियों के
बारे में कथा इस
प्रकार है|
एक बार चित्ररथ नाम के
राजा ने एक
अच्छा बगीचा निर्माण
किया था| इस बगीचे में
सुंदर फूल लग रहे थे. इन
फूलों को हर दिन वह
राजा भगवान शिव
की पूजा में इस्तेमाल
किया करता था |
एक गंधर्व जिसका नाम
पुष्पदंत Pushpadant,
इंद्र के दरबार में गायक
था, एक दिन सुंदर फूलों से
मोहित हो कर उन्हें
चुराने लगा , परिणाम
स्वरुप राजा Chitraratha
फूल भगवान शिव
को अर्पित नहीं कर
पा रहे थे | राजा बहुत
कोशिश करने के बाद
भी चोर को पकड़ने में
असफल रहे
क्योंकि गन्धर्व में अदृश्य
रहने की शक्ति थी |
अंत में राजा ने अपने बगीचे
में शिव निर्माल्य
फैला दिया | शिव
निर्माल्य – बिल्व पत्र ,
फूल, वगैरह जो भगवान
शिव की पूजा में इस्तेमाल
किया गया है उसे कहते हैं |
शिव निर्माल्य बहुत
पवित्र माना जाता है|
चोर पुष्पदंत,
यही नहीं जानते हुए, शिव
निर्माल्य के ऊपर से
चला गया, और उस से वह
भगवान शिव के क्रोध
का पात्र बन पड़ा |
पुष्पदंत ने अपनी दिव्य
शक्तिया खो दी | उसने
क्षमा याचना के लिए
भगवान शिव
की महिमा स्तोत्र
की रचना की | इस
प्रार्थना में उसने शिव
प्रभु
की महानता को गाया |
भगवान शिव की कृपा से
यह स्तोत्रं बन गया है,
और पुष्पदंत की दिव्य
शक्तिया लौट आयी | यह
प्रार्थना `शिव
महिम्नस्तोत्र ‘ के रूप में
जाना गया |

Sunday, July 7, 2013

Mandir parichay

Shiv Shani Mandir,
Dhori is a temple
located in Bokaro
District of Jharkhand. It
is about 32 km from
Bokaro and is located at
Old B.D.O Office Dhori.
The presiding deity of
temple, Sri Shiv, Parvati,
Ganesh, Hanuman,
Kartikey and
Shaneshwara or Lord
Shani- the
personification of the
planet Saturn is
worshipped with
utmost reverence and
devotion by multitudes
of people from all over
the locality. The
spectacle of the deity in
shivling is
overwhelming.Unlike
other pilgrimage
centres, devotees here
can perform puja or
abhishek or other
religious rituals
themselves. One of the
unique aspects of the
temple is that it is the
one and only temple in
Bermo area where Lord
Shiva and his loving Lord
Shani are established
together. The people
here believe that it is
the benediction of the
god that locality is quite
peaceful. Shri Maa
Banaso Temple and The
surya temple of
Badhkaro are the
nearby attractions.
By road, temple is linked
with Bokaro (32 km)
and Phusro (01 km).
Phusro Railway Station
and Amlo halt is the
nearest railhead.
History [edit]
The temple was made
in 1975 by the effort of
local rich men.Mr.
Awadhesh Pathak was
chosen as the first
priest(pujari ji) of the
temple.He worshiped
lord shiva with full of
devotion and faith,then
Mr. Arvind pathak(son
of Awadhesh pathak)
took the official duty of
temple as his father
became unable.In the
year 2008 Mr. Shudir
gupta established lord
shani in the same
campus by the help of
Arvind pathak
Maintainace &
management
[edit]
The temple is run by a
commeetee of 6-7
men.,they are the pillars
of this temple.
1.President-Mr.
Phulchand mishra
2.cashier-Mr. Baijnath
seth 3.secratory-Mr.
Sankar 4.Chairmen-Mr.
Krishna kr. 5.Pujari &
Management incharge-
Mr.Awadhesh pathak
6.Asistent
management incharge-
Amit Pathak,Sumit
Pathak and Nav yuvak
shangh
External links
[edit]
Shiv Shani Mandir,
Dhori on Facebook


--
Amit pathak

Saturday, July 6, 2013

SHRI SHIV BILWASHTAKAM

How to offer Bilwa Leaf


Tridalam
Trigunakaaram
Trinethram Cha
Triyayusham,
Trijanma Papa
Samharam Eka
Bilwam Shivarpanam
1
I offer one leaf of
Bilwa to Lord Shiva,
Which has three
leaves,
Which causes three
qualities,
Which are like the
three eyes of Shiva,
Which is like the triad
of weapons,
And which destroys
sins of three births.
Trishakhai
Bilwapathraischa
Hyachidrai Komalai
Shubai,
Shiva Poojam
Karishyami, Eka
Bilwam Shivarpanam
2
I offer one leaf of
Bilwa to Lord Shiva,
Which has three
shoots,
Which do not have
holes,
Which are good and
pretty,
And worship Lord
Shiva.
Aganda Bilwa
Pathrena Poojithe
Nandikeshware,
Shudhyanthi Sarva
Papebhyo, Eka
Bilwam Shivarpanam
3
I offer one leaf of
Bilwa to Lord Shiva,
For if an uncut leaf is
offered,
To his steed the god
Nandi,
We get cleaned of all
our sins.
Salagrama
Shilamekaam
Vipranam Jatha Cha
Arpayeth,
Soma Yagna Maha
Punyam, Eka Bilwam
Shivarpanam 4
I offer one leaf of
Bilwa to Lord Shiva,
For it is equal to,
offering a saligrama
to a Brahmin,
Or the great blessing
got out of
performing Soma
Yaga,
Dandi Koti Sahasrani
Vajapeya Sathani
Cha,
Koti Kanya Maha
Danam, Eka Bilwam
Shivarpanam 5
I offer one leaf of
Bilwa to Lord Shiva,
For it is equal to
gifting thousand
elephants,
Or the performing of
hundred fire
sacrifices,
Or giving away billions
of girls.
Lakshmyasthanutha
Uthpannam
Mahadevasya Cha
Priyam,
Bilwa Vruksham
Prayachami, Eka
Bilwam Shivarpanam
6
I offer one leaf of
Bilwa to Lord Shiva,
For it is equal to
giving a tree of Bilwa,
Which was born from
the breast of
Lakshmi,
And which is very
dear to the Lord
Shiva.
Darshanam Bilwa
Vrukshasya,
Sparsanam Papa
Nasanam,
Aghora Papa
Samharam, Eka
Bilwam Shivarpanam
7
I offer one leaf of
Bilwa to Lord Shiva,
As seeing and
touching of a tree of
Bilwa,
Washes away ones
sins and also very
great sins.
Kasi Kshethra
Nivasam Cha Kala
Bhairava Darshanam,
Prayaga Madhavam
Drushtwa, Eka
Bilwam Shivarpanam
8
I offer one leaf of
Bilwa to Lord Shiva,
After living in the city
of Kasi,
Seeing the Kala
Bhairawa,
And also visiting the
temple
Of Madhawa in
Allahabad.
Moolatho Brahma
Roopaya, Madhyatho
Vishnu Roopine
Agratha Shiva
Roopaya, Eka Bilwam
Shivarpanam 9
I offer one leaf of
Bilwa to Lord Shiva,
As Brahma resides at
its bottom,
Lord Vishnu lives in
its middle,
And Lord Shiva lives
in its tip.
Bilwashtakam Idham
Punyaam, Padeth
Shiva Sannidhou,
Sarva Papa
Nirmuktha Shiva Loka
Maapnuyath 10
Reading this holy
octet of Bilwa,
In the presence of
Lord Shiva,
Would save one from
all sins,
And in the end take
him to the world of
Shiva.
--


--
Amit pathak